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उपचुनावों में सहानुभूति आएगी काम या घोषणाएं बचाएंगी साख

हिमाचल प्रदेश में उपचुनावों को लेकर राजनितिक दलों में सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं और आए दिन टिकटों के दावेदारों में ज़ुबानी जंग भी खूब सुनने को मिल रही है | एक तरफ जहां कांग्रेस नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के देहांत की सहानुभूति के दम पर उपचुनाव में प्रत्याशी उतारने को तैयार है वहीँ दूसरी तरफ भाजपा प्रदेश में अपनी सरकार के बलबूते पर मुख्यमंत्री के माध्यम से घोषणाएं करवाकर उपचुनाव जीतने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है |

अगर हकीकत देखें तो प्रदेश की जनता के लिए दोनों ही पार्टियां कुछ ख़ास नहीं कर पायी हैं | कांग्रेस जहाँ विपक्ष की भूमिका निभाने और सरकार से जनता के हिट के मुद्दे उठाने में विफल रही है वहीं दूसरी तरफ भाजपा सत्ता में होने के बावजूद कोरी घोषणाओं के अलावा कुछ ख़ास नहीं कर पायी है | बात अगर नेतृत्व की करें तो कांग्रेस अभी अपना नेता तलाश रही है और भाजपा अपने अन्तर्विरोधियों को मनाने में लगी है | 

अब देखना यह भी बाकी है की स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की अस्थि कलश यात्रा कांग्रेस के काम आती है या फिर सत्ता में काबिज भाजपा की कोरी घोषणाएं सरकार की साख बचाने में कामयाब होती हैं , क्योंकि कहीं न कहीं उपचुनाव के नतीजों का असर "कांग्रेस के मिशन डिलीट एवं भाजपा के मिशन रिपीट" पर भी गहरा असर डालेगा |

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